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सफल कैसे होंPublisher: Saranjeet Singh | Published: 17 Mar 2016 4:46 pm

योजना एवं व्यवस्था एक पहलू के दो स्वरूप हैं। योजना के द्वारा कार्य का प्रारूप तैयार होता है, उसका खाका खीचां जाता है कि किस प्रकार किसी कार्य को चरणबद्ध ढंग से एंव निश्चित समय में पूरा किया जाए। योजना कार्य का बौद्धिक पक्ष है, परन्तु जिस माध्यम से बनाई गई योजना को क्रियान्वित किया जाता है, उसे व्यवस्था पक्ष कहते हैं। दोनों एक दूसरे के परिपूरक है। केवल योजना हो, उसका क्रियान्वयन न हो तो योजना कागजी स्वरूप बनी रह जाती है, परन्तु केवल व्यवस्था हो और उसमें कोई निश्चित योजना न हो तो उसका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल पाता है। अत: दोनों का अपना विशिष्ट महत्व है।योजना बीज है और व्यवस्था उसका कलेवर। योजना मस्तिष्क की उर्वरा भूमि में पल्लवित होती है तो व्यवस्था कर्म के क्षेत्र में क्रियान्वित होती है। योजना दूरदर्शी हो और व्यवस्था भी चाक-चौबंद होनी चाहिऐ। दी गई कार्य योजनाओं को किस प्रकार क्रियान्वित करना है, उसकी देख रेख करनी होती है। इसे यों कह सकते है कि व्यवस्थापक एक कुशल रखवाला होता है, जो योजना को सही ढंग से क्रियान्वित कर देता है। व्यवस्थापक को व्यवस्था के अलावा कोई अन्य काम नहीं करना पड़ता है और न कुछ सोचना पड़ता है अत: अपनी व्यवस्था में वह सारी ऊर्जा खपा देता है, जिसमें व्यवस्था संभली रहती है और सुचारू रूप से गति करती रहती है, परन्तु यदि व्यवस्थापक को योजना का भी काम दे दिया जाएगा तो या तो व्यवस्था चरमरा जाएगी या फिर योजना डगमगाएगी। सभी मोर्चो में एक साथ काम कर पाना सभी के लिए संभव नहीं हो सकता है, हालांकि कुछ विरले लोग ऐसे भी होते है, जो दोनों क्षेत्रों में एक साथ कार्य करने की क्षमता रखता है।चंद्रगुप्त के हाथों राज्य की बागडोर थमाकर चाणक्य वहद् भारत की योजना बुनते रहते थे। वे सफल रहे।व्यवस्था ऐसी युक्ति है, जिसको देखने, संभालने में उर्वर मस्तिष्क भी थककर कुंद हो जाता है। उसे उर्वर बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि वह इस संजाल में अधिक न उलझे। परन्तु व्यवस्था ऐसी आकर्षक भूमि है, जहां अधिकार का प्रभाव एंव प्रतिष्ठा होती है और अधिकार से अहंकार को त्रिप्ति मिलती है, अंहकार तुष्ट होता है। व्यवस्था में बड़ा आकर्षण होता है और इस ओर झुकाव भी अधिक देखा गया है।योजनाकार नई नई योजना बनाने में संतुष्टि पाता है। वह तो अपनी योजना को क्रियान्वित होते देखता है और प्रसन्न होता है। वह व्यवस्था में अधिक उलझना नहीं चाहता है। अत: कार्य की सफलता के लिए आवश्यक है कि योजना एंव व्यवस्था को दो अलग अलग क्षेत्रों में बांट दिया जाए। यही है कार्य की सफलता का राज एंव रहस्य।साभार, अखण्ड ज्योति Provided By New Happy Public School Narela




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